देश को आजाद हुए आज 65 वर्ष पूरे हो गये. देश को यह आजादी एक दिन में
नहीं मिली, बल्कि इसके लिए लंबा और कठिन संघर्ष करना पड़ा. छोटी-छोटी
सफलताओं के लिए ब.डे-ब.डे संघर्ष किये गये. हालांकि, आज हम इस संघर्ष को
भूल-से गये हैं. सूचना क्रांति के युग में हमारे पास दुनियाभर की सूचनाएं
तो हैं, लेकिन अपने ही देश के इतिहास से हम अनजान जैसे हैं. आजादी की
66वीं वर्षगांठ के मौके पर भारत की आजादी के अहम पड़ावों को याद करना,
वास्तव में उस इतिहास को नये सिरे से जीने जैसा है. आजादी के अहम पड़ावों
के बीच ले जाता आज का नॉलेज.
15 अगस्त ही क्यों चुना गया?
जब अंग्रेजों ने अंतत: उपमहाद्वीप को छोड़ा, तो उन्होंने 15 अगस्त, 1947
को सत्ता सौंपने का निर्णय लिया. यह तारीख वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन
द्वारा चुना गया था. क्योंकि द्वितीय विश्वयुद्ध में मित्र देशों के
समक्ष जापान द्वारा सर्मपण की यह दूसरी वर्षगांठ थी. 1945 में इसी दिन
जापान ने आत्मसर्मपण किया था. पंडित जवाहरलाल नेहरू और सत्ता पाने का
इंतजार करने वाले राजनेता, कुछ अन्य नेताओं द्वारा पसंद किये गये 26
जनवरी, 1948 तक इंतजार के लिए इच्छुक नहीं थे. इसलिए हमारी आजादी उस दिन
आयी जो राष्ट्रीय भावनाओं की अपेक्षा औपनिवेशिक गर्व का दिन था.
ज्योतिषयों ने भी कहा था कि 15 अगस्त एक अशुभ दिन है. यही वजह है कि भारत
की आजादी का उत्सव मध्यरात्रि से कुछ समय पहले शुरू हो गया और 14 अगस्त
की मध्यरात्रि को संविधान सभा की विशेष बैठक के साथ जश्न मनाने का फैसला
हुआ.
15 अगस्त 1947 का कार्यक्रम
8:30 सुबह - गवर्नमेंट हाउस में गवर्नर जनरल और मंत्रियों का शपथ समरोह.
9:40 सुबह - संविधान सभा के लिए मंत्री रवाना.
9:50 सुबह- संविधान सभा की ओर राजकीय यात्रा.
9:55 सुबह- गवर्नर जनरल को सलामी दी.
10:30 सुबह- संविधान सभा में राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया.
6:00 शाम- इंडिया गेट पर ध्वज समारोह आयोजित.
7:00 शाम - रोशनी जगमगायी.
7.45 शाम - आतिशबाजी का प्रदर्शन हुआ.
8.45 शाम- गवर्नमेंट हाउस में आधिकारिक डिनर का आयोजन.
10:15 शाम - गवर्नमेंट हाउस में स्वागत समारोह.
स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त) सिर्फ एक त्योहार ही नहीं, हर भारतवासी के
लिए एक नयी शुरु आत की तरह है. इसी दिन 1947 को 200 वर्ष से अधिक समय तक
ब्रिटिश उपनिवेशवाद के चंगुल से निकलकर एक नये युग की शुरुआत हुई थी.
प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने देश को संबोधित करते कहा था
कि 'रात 12 बजे जब दुनिया सो रही होगी, तब भारत जीवन और स्वतंत्रता पाने
के लिए जागेगा. एक ऐसा क्षण जो इतिहास में दुर्लभ है, जब हम पुराने युग
से नये युग की ओर कदम बढ.ायेंगे. भारत दोबारा अपनी पहचान बनायेगा.'
भारत की आजादी का पहला बड़ा संघर्ष मेरठ छावनी में सिपाहियों की बगावत के
साथ मई 1857 में शुरू हुआ. देखते ही देखते यह चिंगारी एक महासंग्राम में
बदल गयी. 1857 की क्रांति तो असफल हो गयी, लेकिन देश में अंग्रेजी शासन
से मुक्ति की भावना प्रबल हो गयी थी. 1857 में जगी अंगरेज विरोधी भावना
का प्रसार धीरे-धीरे राष्ट्रीय भावना में हुआ और 1885 ईस्वी में कांग्रेस
के गठन के साथ इस राष्ट्रीय भावना को व्यापक मंच मिला. गदर के 90 साल बाद
आखिरकार देश को आजादी मिली. इन वर्षों के दौरान हुए समस्त स्वतंत्रता
संग्राम के आंदोलनों के कारण देश में जागरूकता का वातावरण बना था और इसी
कारण उन परिस्थितियों का निर्माण हुआ था, जिनसे बाध्य होकर अंग्रेजों को
भारत छोड़ने का फैसला करना पड़ा. यह माहौल एक दिन में नहीं बना था. इस
माहौल के निर्माण में कई परिस्थितियां जिम्मेदार थीं. 1857 से 1947 तक
चली आजादी की लड़ाई का प्रभाव व्यापक था. इसमें अनेक अध्याय जु.डे हैं.
भारत को आजादी भले 15 अगस्त 1947 को मिली, लेकिन 17 साल पहले 1930 से ही
हर साल 26 जनवरी को पूरे देश में पूर्णस्वराज दिवस के तौर पर मनाया जाने
लगा था. 1929 के कांग्रेस के लाहौर सम्मेलन में जवाहरलाल नेहरू ने पूर्ण
स्वराज का प्रस्ताव पेश किया था. यह तय हो गया था कि अब स्वराज से कम
किसी चीज पर तैयार नहीं होना है.
स्वतंत्रता की ओर
पहला स्वाधीनता संग्राम
मई 1857 में देश में प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन का आगाज हुआ. इसे गदर के
नाम से भी जाना जाता है. उत्तर भारत के ब.डे हिस्से से अंग्रेजी शासन को
उखाड़ फेंका गया. इतिहासकार विपिन चंद्र ने लिखा है कि अंगरेजों को एक
बार फिर भारत को जीतना पड़ा. हालांकि इस विद्रोह को अंगरेजों ने निर्ममता
के साथ दबा दिया.
कांग्रेस का गठन
1885 में एक अवकाश प्राप्त अंगरेज अधिकारी एओ ह्यूम ने देश के पढे. लिखे
मध्यवर्ग के लोगों के साथ मिलकर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का मुंबई में
गठन किया. कांग्रेस का पहला अधिवेशन मुंबई के गोकुलदास तेजपाल संस्कृत
कॉलेज में व्योमेश चंद्र बनर्जी की अध्यक्षता में हुआ. इसने नागरिकों के
लिए अधिकारों की मांग की. इसके अलावा विधान परिषदों में सुधार और विस्तार
की मांग की.
बंगाल विभाजन और स्वदेशी आंदोलन
बंगाल में उभर रहे राष्ट्रवाद को कुंद करने के लिए तत्कालीन वायसराय
लॉर्ड कर्जन ने बंगाल का विभाजन करने का फैसला किया. इसके तहत बंगाल को
पूर्वी और पश्चिमी बंगाल में बांट दिया गया. मकसद था एक मुसलिम बहुल,
बांग्लाभाषी राज्य (असम सहित) बनाना और दूसरा बांग्लाभाषी अल्पसंख्यकों
वाला राज्य (बिहार, ओड़िशा सहित) बनाना. इसके विरोध में बंगाल में
बहिष्कार और स्वदेशी आंदोलन शुरू हुआ. यह देश का पहला व्यापक आंदोलन था.
मार्ले-मिंटो सुधार
1909 ईस्वी में अंगरेजों ने भारत सरकार के ढांचे में कुछ सुधार लाने की
घोषणा की, जिसे मार्ले-मिन्टो सुधार के नाम से जाना जाता है. मार्ले भारत
के सेक्रेटरी आफॅ स्टेट और मिंटो भारत के वायसराय थे. इसमें भारत के
प्रत्येक प्रांत के परिषदों में भारतीय सदस्य नियुक्त किये जाने और उनकी
शक्ति और कार्यक्षेत्र को बढ.ाने की बात की गयी. इन सुधारों से निराशा ही
मिली. इसमें प्रप्रतिनिधि सरकार की स्थापना की दिशा में बढ.ने का कोई
प्रयास दिखायी नहीं दिया. मुसलमानों को पृथक निर्वाचन का अधिकार देना
हिंदू-मुसलिम फूट का कारण बना.
मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार-1919
वर्ष 1919 में गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट लाया गया. इसे
मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार के नाम से जाना जाता है. इसके तहत देश में
द्वैध शासन की शुरुआत हुई. आंदोलनकारी इन सुधारों से असंतुष्ट थे,
क्योंकि ये सभी केवल नाम के अधिकार थे. इन सुधारों की समीक्षा करने के
लिए भेजे गये साइमन कमीशन ने ब्रिटिश सरकार को 1930 में रिपोर्ट सौंपी.
इस आयोग में एक भी भारतीय नहीं था. कांग्रेस ने इसे अस्वीकार कर दिया.
असहयोग आंदोलन (1920-22)
रौलट एक्ट, जालियावाला बाग हत्याकांड और पंजाब अशांति की जांच के लिए
गठित हंटर आयोग, मांटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधारों, खिलाफत आंदोलन आदि के
कारण कांग्रेस ने महात्मा गांधी की अगुवाई में असहयोग आंदोलन शुरू करने
का फैसला किया. आंदोलन 1 अगस्त 1920 से शुरू हुआ और इसने अंगरेजों को यह
अहसास कराया कि अंगरेजों को सचमुच सशक्त चुनौती दी जा सकती है. यह आंदोलन
काफी सफल रहा.
नेहरू रिपोर्ट
साइमन कमीशन का बहिष्कार करने पर लॉर्ड बर्कनहेड ने भारतीयों को संविधान
बनाने की चुनौती दी. कांग्रेस ने इस चुनौेती को स्वीकार किया. मोतीलाल
नेहरू की अध्यक्षता में एक संविधान निर्माण समिति बनायी गयी. समिति ने 10
अगस्त 1928 को अपनी रिपोर्ट पेश की. यह भारतीयों द्वारा बनाया गया पहला
संविधान था.
लाहौर अधिवेशन और पूर्ण स्वराज की मांग
1929 के कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में रावी नदी के किनारे 31 दिसंबर की
रात तिरंगा फहराकर पूर्ण स्वतंत्रता का प्रस्ताव पारित किया गया.
कांग्रेस कार्यसमिति ने हर साल 26 जनवरी को स्वाधीनता दिवस के तौर पर
मनाने का फैसला किया.
सविनय अवज्ञा आंदोलन
12 मार्च 1930 को महात्मा गांधी और उनके चुने 78 कार्यकर्ता साबरमती से
दांडी की ओर नमक कानून तोड़ने के लिए निकले. इसे ही दांडी मार्च कहा जाता
है. नमक कानून तोड़ने का यह आंदोलन सरकारी आदेशों की अवज्ञा का आंदोलन था
और इसे अभूतपूर्व सफलता मिली. सबसे बड़ी बात थी कि इसमें महिलाओं ने काफी
बढ.-चढ.कर शिरकत की थी.
भारत छोड़ो आंदोलन
8 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी ने करो या मरो का नारा दिया और 9 अगस्त से
भारत छोड़ो आंदोलन शुरू करने का ऐलान किया. हालांकि, 9 अगस्त के तड़के ही
गांधी और दूसरे ब.डे नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन यह आंदोलन
स्वत:स्फूर्त तरीके से व्यापक प्रसार वाले महान आंदोलन में तब्दील हो
गया. इस आंदोलन ने यह साबित कर दिया कि अब अंगरेज भारत पर शासन नहीं कर
सकते.
आजादी की ओर
वर्ष 1935 में गवर्मेंट ऑफ इंडिया एक्ट बना. यह मील का पत्थर बना. आज भी
संविधान का 75 फीसदी भाग इसी पर आधारित है. ब्रिटेन में इस दौरान नेशनल
पार्टी की सरकार थी. इस एक्ट का बहुत से ब्रिटेनवासियों ने विरोध किया.
एक्ट में भारत के निर्वाचित सदस्यों को रक्षा और विदेश मामलों को छोड़
व्यापक अधिकार दिये गये. लेकिन इसमें भी भारत को डोमिनियन स्टेटस
(स्वराज्य) का दर्जा नहीं मिला, जिससे कांग्रेस भी नाराज थी. इसके तहत
1937 में प्रांतीय चुनाव हुए. कांग्रेस को 11 में से आठ प्रांतो में जीत
मिली. इसके बाद से जित्रा के नेतृत्व में मुसलिम लीग की ओर से अलग देश की
आवाज उठने लगी. द्वितीय विश्व युद्ध सितंबर 1939 में शुरू हुआ और भारतीय
नेताओं से परार्मश किये बगैर भारत की ओर से ब्रिटिश राज के गर्वनर जनरल
ने युद्ध की घोषणा कर दी.
इसी बीच अंतरराष्ट्रीय घटनाक्रम में बदलाव आया. भारतीय सेना द्वारा जापान
के खिलाफ बर्मा में ब्रिटिश सैनिकों की मदद करने के एवज में ब्रिटेन ने
युद्ध की समाप्ति के बाद भारत को डोमिनियन स्टेटस प्रदान करने का वादा
किया. विश्वयुद्घ की समाप्ति हुई. वर्ष 1945 में ब्रिटेन में क्लेमेंट
एटली के नेतृत्व में लेबर पार्टी की सरकार बनी. मार्च 1946 में एक
कैबिनेट कमीशन भारत भेजा गया, इसने एक अंतरिम सरकार के निर्माण का
प्रस्ताव दिया गया. जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व ने एक अंतरिम सरकार का
निर्माण किया गया. जबकि मुस्लिम लीग ने संघटक सभा के विचार विर्मश में
शामिल होने से मना कर दिया और पाकिस्तान के लिए एक अलग राज्य बनाने का
दबाव डाला. नयी सरकार ने इस समस्या के सामाधान के लिए एक योजना बनायी थी.
उसने दोनों हिंदू और मुसलिमों के लिए मान्य संविधान बनाने की योजना बनायी
थी, जो विफल हो गयी.
भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड वेवेल ने अगस्त 1946 में नेहरू को
अंतरिम सरकार के गठन के लिए बुलाया. वेवेल को विश्वास था कि इंडियन
नेशनल कांग्रेस की सरकार को सभी का सर्मथन मिलेगा. नेहरू अपने कैबिनेट
में दो मुसलिम चेहरे को लाये, लेकिन इससे सर्मथन नहीं मिला. जित्रा ने
नेहरू के प्रति अविश्वास दिखाया. उन्होंने स्वतंत्र मुसलिम स्टेट की
मांग के लिए मुसलिमों से 16 अगस्त 1946 को डायरेक्ट एक्शन दिवस के तौर पर
मनाने को कहा. इससे हिंसा बढ.ी और कलकत्ता में हजारों लोगों की मौत हो
गयी. देश में गृह युद्घ फैल गया.
वर्ष 1947 की शुरुआत में एटली ने घोषणा की कि ब्रिटेन भारत को जून 1948
के बाद छोड़ने पर विचार करेगा. उन्होंने इसके लिए नये वायसराय के रूप में
लॉर्ड माउंटबेटन की नियुक्ति की. माउंटबेटन ने कहा कि भारत में शांति तभी
आयेगी जब इसका विभाजन होगा. माउंटबेटन ने माना कि थोड़ी-सी भी देरी हिंसा
को और बढ.ायेगी.
उन्होंने ब्रिटेन द्बारा भारत छोड़ने की तिथि 15 अगस्त 1947 घोषित कर दी.
अगस्त 1947 में इंडियन इंडिपेनडेंस एक्ट पर हस्ताक्षर किया गया और 14
अगस्त की आधी रात को देश की बागडोर ब्रिटेन ने भारतीयों के हाथ में सौंप
दिया. इस तरह भारत एक लंबी दासता के बाद स्वतंत्र हो गया.सर्वपल्ली
राधाकृष्णन ने 14 अगस्त की रात को जवाहर लाल नेहरू के साथ ही राष्ट्र को
संबोधित कियाथा. उन्होंने कहा था कि असहिष्णुता हमारे विकास में सबसे
बड़ी बाधा है. यानी हमें दूसरे की विचारों और विश्वासों को स्वीकरना
होगा. उन्होंने कहा था कि स्वराज सहिष्णुता की भावना काविकास करता है.
मैं इस प्रस्ताव का सर्मथन करता हूं. भारत के जन प्रप्रतिनिधियों से कहा
गया था कि वे अपने जीवन में विनम्रता की भावना लाएं विनम्रता अर्थ यह है
कि हम स्वयं में तुच्छ हैं. हमें खुद को आत्मनिर्भर बनाना होगा. हमें एक
दूसरे के धर्मों को मान्यता देनी होगी. इसीलिए मन में विनम्रता,
सहिष्णुता और सर्मपण की भावना के साथ हमें नये युग जो 12 बजे के बाद
दस्तक देगी, में प्रवेश करना होगा.
आजादी के दिन तक अंगरेजों की सोच में हमें आजाद करना नहीं था
-रिजवान कैसर
जामिया मिल्लिया इसलामिया में इतिहास के प्रोफेसर
जब किसी देश या समाज की आजादी का संघर्ष चलता है और व्यवस्था परिवर्तन की
मांग होती है, तो यह ब.डे कानूनी परिवर्तनों के बदौलत ही संभव हो पाता
है. आज हमारे देश में दूसरी आजादी को लेकर अत्रा का आंदोलन चला है और अभी
रामदेव का आंदोलन चल रहा है. यह दूसरी आजादी भ्रष्टाचार से आजादी है. यह
इतनी जल्दी संभव नहीं है. ठीक उसी तरह जब अंगरेजों से आजादी मिलने में
हमें तकरीबन दो सौ साल की गुलामी का दंश झेलना पड़ा था. हम दो सौ साल तक
गुलाम रहे, लेकिन इस बीच हमने बहुत ब.डे-ब.डे आंदोलन किये. इन आंदोलनों
की बदौलत ही आजादी मिली. अब इसी बीच सवाल उठता है कि क्या अंगरेज अचानक
हमारा देश छोड़कर वापस जाने के लिए तैयार हो गये थे. जवाब है कि बिल्कुल
नहीं. यहां तक कि आजादी मिलने के दिन तक अंगरेजों की सोच में हमें आजाद
करना नहीं था. आजादी के आंदोलनों के कारण इंग्लैंड पर बढ. रहे दबाव के
चलते ही ऐसा संभव हो सका.
आजादी का संघर्ष 19वीं सदी से 20वीं सदी तक चलता रहा. लेकिन भारतीयों को
सत्ता हस्तांतरण की सबसे पहले शुरुआत 1919 में हुई. लेकिन यह सिर्फ सत्ता
हस्तांतरण की बात थी, आजादी की बात नहीं थी. अंगरेज जब भी भारतीयों को
कोई अधिकार देते थे, उस पर उनका वीटो पावर जरूर रहता था, जिससे वे जब
चाहे, उसमें दखल दे सकते थे. 1919 में 'गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट-1919'
आया जिसे 'मांटेग्यू चेम्सफोर्ड रिफॉर्म' भी कहते हैं, जिसके तहत यह
प्रावधान किया गया था कि कुछ ब्रिटिश-इंडियन प्रांतों की सत्ता भारतीय
हाथों में सौंप दी जायेगी. उस सत्ता में वे लोग होंगे जिन्हें वहां के
भारतीय चुन कर भेजेंगे. लेकिन उस प्रांत का गवर्नर अंगरेज होगा और उसके
पास कुछ विशेषाधिकार होंगे. उस वक्त वह विशेषाधिकार सत्ता में दखलअंदाजी
करने के लिए काफी था. इस बीच कुछ प्रांतों में उन्होंने भारतीय हाथों में
सत्ता सौंपी भी. लेकिन अब उन प्रांतों को स्वायत्तता देने की बात होने
लगी थी, क्योंकि अंगरेजों का दखल ज्यादा था. 1919 एक्ट की समीक्षा करने
और उसके कुछ प्रावधानों में सुधार के लिए ब्रिटिश सरकार ने 1927 में सात
सदस्यीय साइमन कमीशन भेजा. उस कमीशन में एक भी भारतीय शामिल नहीं था,
जिसके कारण उसका जबरदस्त विरोध हुआ और कांग्रेस ने तिरंगा लहराया. देश के
नागरिकों के अधिकारों को लेकर गांधीजी के नेतृत्व में अप्रैल 1930 में
नागरिक अवज्ञा आंदोलन शुरू हो गया. ब्रिटिश सरकार ने इसे दबाने की पुरजोर
कोशिशें की, जिसमें बहुत से लोग मारे भी गये.
संघर्ष और आगे बढ.ा. भारतीयों के विरोध को देखते हुए इंग्लैंड में
ब्रिटिश सरकार द्वारा एक 'राउंड टेबल कांफ्रेंस' बुलायी गयी. उसका मकसद
यह था कि भारतीय जिस अधिकार की बात कर रहे हैं, उसके बारे में राय-मशविरा
करना और भारतीयों की मांगों को समझकर प्रावधान में सुधार करना. इसी के
तहत जो एक्ट आया उसे 'गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट-1935' कहते हैं. इसके
ब.डे प्रावधान में यह था कि भारतीय प्रांतों को स्वायत्तता मिलेगी और
वहां पर वे अपनी निर्वाचित सरकार बना सकेंगे. 1939 में जब विश्वयुद्ध की
शुरुआत हुई तो भारतीयों ने घोषणा कर दी कि वे इसका हिस्सा नहीं बनेंगे.
इसके बाद आजादी के आंदोलन का स्वरूप और व्यापक हो गया. ठीक इसी वक्त
अंगरेजों ने ये समझ लिया कि अब उनका हिंदुस्तान में रहना मुश्किल है.
लेकिन अभी भी वे भारत की आजादी के बारे में नहीं सोच रहे थे. इसलिए
उन्होंने मुसलिम लीग और कांग्रेस को अपनी नीतियों के तहत फोड़ना शुरू कर
दिया.
1945 में वेवेल प्लान आया और अप्रैल, 1946 में कैबिनेट मिशन आया. इसके
तहत अंगरेजों ने यह माना कि भारतीयों के हाथ में सत्ता का हस्तांतरण का
प्रावधान होना चाहिए. लेकिन तब भी उनकी सोच में भारतीयों को सत्ता
हस्तांतरण के साथ-साथ उनकी दखलंदाजी भी शामिल थी. और यह तो जग जाहिर है
कि सत्ता में दखलंदाजी बहुत मायने रखती है सिर्फ मायने नहीं रखती, बल्कि
सत्ता को अपने अनुरूप चलाती है. लेकिन जब विरोध बढ.ता गया और वेवेल प्लान
सफल होता नहीं दिखा तो ब्रिटिश सरकार ने लॉर्ड वेवेल को वापस बुला लिया
और उसकी जगह लॉर्ड माउंटेबेटन को भेजा. अंग्रेजों को लगा कि वे
माउंटेबेटन को भेजकर स्थिति में सुधार कर लेंगे.
लेकिन जिस कदर विरोध बढ. रहा था और आजादी का आंदोलन तेजी से बढ. रहा था,
उसे देखते हुए लॉर्ड माउंटेबेटन को तीन जून, 1947 को एक योजना की घोषणा
की. उस योजना के तहत यह कहा गया कि 'सत्ता भारतीयों के हाथ में होगी.'
यही वह 3 जून, 1947 है जब अंग्रेजों ने पूरी तरह सोच लिया था कि अब
उन्हें हिंदुस्तान छोड़कर वापस जाना होगा. लॉर्ड माउंटेबेटन के आने के
पहले तक तो स्थिति यह थी कि अंगरेजों की सोच में भारत की आजादी की बात ही
नहीं थी. इस तरह टुकड़ों-टुकड़ों में 1940 का दशक कई ब.डे आंदोलनों जैसे
भारत छोड़ो आंदोलन, रॉयल इंडिया नेवी आंदोलन आदि का गवाह बना और भारत की
आजादी में एक बड़ी भूमिका निभायी.
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