इलेक्ट्रॉनिक-कचरा कारगर होगा नया कानून! | ||
(600 से अधिक ई-कचरा संग्रहण केंद्र देश में हैं. इन केंद्रों पर ही ई-कचरों का निबटान हो सकता है. | ||
3,50,000 टन ई-कचरा हर साल भारत में पैदा होता है और 50,000 टन का आयात. | ||
05 प्रतिशत है इलेक्ट्रॉनिक कचरे का हिस्सा, विश्व के कुल कचरे में.) | ||
भारत में इलेक्ट्रॉनिक कचरे यानी ई-कचरे की समस्या को निपटाने के लिए कानून 1 मई से लागू हो गया. इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट (मैनेजमेंट एंड हैंडलिंग) रुल्स-2011 के इस कानून के तहत पूरे देश में कोई भी ई-कचरे को यूं ही कहीं फेंक या डंप नहीं कर सकता है. इन्हें पर्यावरण मंत्रालय के तहत आने वाले केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड द्वारा अधिकृत कचरा संग्रहण केंद्र में ही डंप किया जा सकता है. ई-कचरे के प्रबंधन एवं उसे रिसाइकल करने संबंधी इस कानून से स्थिति में कितना आयेगा बदलाव, क्या है इलेक्ट्रॉनिक-कचरा और इसके निबटान में किस तरह की हैं चुनौतियां? इन्हीं मुद्दों पर केंद्रित है आज का नॉलेज. | ||
▪चंदन मिश्रा | ||
अक्सर हम अपने घरों का कू.डे-कचरा बाहर फेंक देते हैं. इस पर न तो कोई हमसे सवाल करता है और न ही इसके लिए किसी तरह के दंड का प्रावधान हैं. यह तो बात हुई सामान्य कचरे की. लेकिन यदि आप टीवी, मोबाइल या लैपटॉप या किसी तरह के इलेक्ट्रॉनिक कचरे को बाहर डंप करते हैं, तो इसके लिए आपको जुर्माने के साथ-साथ सजा भी हो सकती है. दरअसल, सरकार ने मंगलवार यानी एक मई से पूरे देश में इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट (मैनेजमेंट एंड हैंडलिंग) रुल्स-2011 को लागू कर दिया है. इसके तहत ई-कचरे को आप यूं ही कहीं भी डंप नहीं कर सकते हैं. इस कानून के तहत आपको ई-कचरे को सरकार द्वारा अधिकृत एजेंसियों को देना होगा. सरकार ने इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट (मैनेजमेंट एंड हैंडलिंग) रूल्स-2011 के तहत 73 रिसाइकलर्स (प्रयोग की गयी वस्तु का दोबारा प्रयोग के लायक बनाने वाली एजेंसी) को अधिकृत किया है. पर्यावरण मंत्रालय के मुताबिक, इस कानून में प्रावधान है कि कोई भी उपभोक्ता अपने पुराने इलेक्ट्रॉनिक सामान को तीन तरीकों से डिस्पोज यानी बेच या नष्ट कर सकता है- पहला, अधिकृत संग्रह केंद्र पर, दूसरा-प्रत्यक्ष तौर पर किसी भी अधिकृत रिसाइकलस या तीसरा-उत्पादक के पास जमा कर. हालांकि, इस कानून में कई प्रावधानों को लेकर इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनियों ने विरोध भी जताया है. लेकिन कानून के तहत इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादक कंपनियों की जिम्मेदारी होगी कि वे ई-कचरे को इकट्ठा करें. यही वजह है कि उत्पादक कंपनियां इस कानून में सुधार चाहती है. क्या था नियम वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के तहत आने वाले केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने ई-कचरे के प्रबंधन एवं निपटान के लिए खतरनाक कचरा प्रबंधन, रखरखाव एवं सीमापार यातायात नियम 2008 बनाये थे. इसके मुताबिक, ई-कचरे के निपटान में इकाइयों की केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में पंजीकृत होना जरूरी है. क्या है मौजूदा कानून में प्रावधान पिछले साल मई में वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने ई-वेस्ट मैनेजमेंट एंड हैंडलिंग रूल्स की अधिसूचना जारी की थी. इस बारे में इससे जु.डे कारोबारियों और उपभोक्ताओं को जानकारी देने के लिए एक साल का समय दिया गया था. यह कानून इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद के सभी प्रकार के उत्पादकों, कारोबारियों, थोक उपभोक्ताओं और उपभोक्ताओं पर लागू होगा. इलेक्ट्रॉनिक और इलेक्ट्रिक वस्तुओं की उपयोग की उम्र निपटाने की जिम्मेदारी उत्पादक संस्थान की होगी. उत्पादक के लिए ही नहीं, बल्कि इस तरह के कचरे के पुन:चक्रण (रिसाइकलिंग) और निपटान के लिए जिम्मेदार संस्थाओं पर भी सही तरीके से निपटाने के लिए यह नियम लागू होगा. उपकरणों के खराब और अनुपयोगी होने पर उपयोगकर्ता की भी जिम्मेदारी होगी. क्या है ई-कचरा ई-वेस्ट आइटी कंपिनयों से निकलने वाला कबाड़ा है, जो तकनीक में आ रहे बदलावों और स्टाइल के कारण निकलता है. उदाहरण के तौर पर, पहले बडे आकार के कंप्यूटर और मॉनीटर आते थे, अब इनकी जगह स्लिम और फ्लैट स्क्रीन वाले छोटे मॉनीटरों ने ले लिया है. माउस, की-बोर्ड, मोबाइल के खराब पुज्रे या अन्य उपकरण जो चलन से बाहर हो गये हैं, वे ई-वेस्ट की श्रेणी में आ जाते हैं. पुरानी शैली के कंप्यूटर, मोबाइल फोन, टेलीविजन और इलेक्ट्रॉनिक खिलौने और अन्य उपकरणों के बेकार हो जाने के कारण भारत में हर साल इलेक्ट्रॉनिक कचरा पैदा होता है. यह मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा उत्पत्र कर सकता है. विकसित देशों में अमेरिका की बात करें, तो वहां हर घर में पूरे साल में छोटे-मोटे लगभग 24 इलेक्ट्रॉनिक उपकरण खरीदे जाते हैं. इन पुराने उपकरणों का फिर कोई उपयोग नहीं होता. इसके अलावा अमेरिका में कितना ई-कचरा पैदा होता है, इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि वहां 7 प्रतिशत लोग हर साल मोबाइल बदलते हैं और पुराना मोबाइल कचरे में डाल देते हैं. देश में कितना ई-कचरा भारत में सरकारी आंक.डे के मुताबिक, 2004 में देश में ई-कचरा एक लाख 46 हजार 800 टन थी, जो 2012 में बढ.कर आठ लाख टन तक होने का अनुमान है. वहीं, ई-कचरा पैदा करने वाले 10 शीर्ष शहरों में दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु, कोलकाता, चेत्रई और हैदराबाद शामिल हैं. किस तरह की है चुनौती विकसित देश अपने यहां ई-कचरे गरीब देशों को बेच रहे हैं. विकसित देश यह नहीं देखते कि गरीब देशों में ई-कचरे के निपटाने के लिए नियम-कानून बने हैं या नहीं. इस कचरे से होने वाले नुकसान का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इनमें 38 अलग प्रकार के रासायिनक तत्व शामिल होते हैं. इनसे काफी नुकसान भी हो सकता है. जैसे टीवी और पुराने कंप्यूूटर मॉनिटर में लगी सीआरटी (कैथोड रे ट्यूब) को रिसाइकल करना मुश्किल होता है. इस कचरे में लीड (शीशा), मरक्युरी (पारा) जैसे घातक तत्व भी होते हैं. दरअसल ई-कचरे का निपटारा आसान काम नहीं है, क्योंकि इसमें प्लास्टिक और कई तरह की धातुओं से लेकर अन्य पदार्थ रहते हैं. इस कचरे को आग में जलाकर इसमें से आवश्यक धातु आदि निकाली जाती है. इसे जलाने से जहरीला धुंआ निकलता है जो काफी घातक होता है. विकासशील देश इसका इस्तेमाल तेजाब में डुबोकर या फिर उन्हें जलाकर उनमें से सोना-चांदी, प्लैटिनम और दूसरी धातुएं निकालने के लिए करते हैं. क्या स्थिति है भारत की भारत में सूचना प्रोद्योगिकी का क्षेत्र बेंगलुरु है. यहां करीब 1700 आइटी कंपनियां काम कर रही हैं. उनसे हर साल 6000 हजार से 8000 टन इलेक्ट्रॉनिक कचरा निकलता है. सबसे चिंता की बात तो यह है कि देश में निकलने वाला हजारों टन ई-कचरा कबाड़ी ही खरीद रहे हैं. इनके पास इस तरह के कचरे को खरीदने की न अनुमति है और न ही वैज्ञानिक तरीके से निपटाने की व्यवस्था. हालांकि, विभित्र स्थानों से ई-कचरा इकट्ठा करने के लिए नेटवर्क बनाया गया है. देश में 600 से अधिक ई-कचरा संग्रहण केंद्र भी हैं. लेकिन, जिस अनुपात में कचरे का उत्पादन होता है, उस लिहाज से यह संख्या कम है. गौरतलब है कि 600 इन संगठनों पर हर साल लगभग 3000 टन ई-कचरा ही रिसाइकिल किया जाता है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, अगले 10 वर्षों में भारत, चीन और अन्य विकासशील देशों में इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की बिक्री बहुत तेजी से बढे.गी. इस तरह इनसे निकलने वाले ई-कचरे का पर्यावरण और लोगों के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव प.डेगा. रिपोर्ट के अनुसार, इस समय हर साल भारत में रेफ्रिजेरेटर से 100,000 टन, टेलीविजन से 275,000 टन, कंप्यूटर से 56,300 टन, प्रिंटर से 4,700 टन और मोबाइल फोन से 1,700 टन ई-कचरा निकलता है. 2020 तक पुराने कंप्यूटरों की वजह से ई-कचरे का आंकड़ा भारत में 500 फीसदी तक बढ. जायेगा. इस तरह अगर ई-कचरे का पुन:चक्रण को लेकर सख्ती से कानून का पालन नहीं किया गया, तो गंभीर संकट का सामना करना पड़ सकता है. विकासशील देशों में और गंभीर है समस्या ई-कचरे की समस्या से सिर्फ भारत ही नहीं, कई देशों में हालात गंभीर होते जा रहे हैं. सभी अधिक विकट समस्या विकासशील देशों की है, जो सर्वाधिक सुरक्षित डंपिंग क्षेत्र माना जाता है. इस कारण विकसित देश भारत, चीन और पाकिस्तान सरीखे एशियाई देशों को ई-कचरों का निर्यात करते हैं. विकासशील अपनी समस्याओं को ताक पर रखकर इन कचरों का आयात करते हैं. भारत में तो हालत यह है कि ऐसे कचरे के आयात पर प्रतिबंध के लिए भारत में चौदह साल पहले बने कचरा प्रबंधन और निगरानी कानून-1989 को धता बताकर औद्योगिक घरानों ने इनका आयात जारी रखा है. अमेरिका, जापान, चीन और ताइवान सरीखे देश तकनीकी उपकरणों में लैस, मोबाइल, फोटोकॉपियर, कम्प्यूटर, लैपटॉप, टीवी, माइक्रोचिप्स, सीडी आदि के कबाड़ होते ही इन्हें दक्षिण पूर्व एशिया के जिन कुछ देशों में ठिकाने लगाते हैं. उनमें भारत का नाम सबसे ऊपर है. अमेरिका के बारे में कहा जाता है कि वह अपने यहां का 80 प्रतिशत ई-कचरा चीन, मलेशिया, भारत, कीनिया और अफ्रीकी देशों में भेजता है. गौरतलब है कि दुनिया के देशों में तेजी से बढ.ती इलेक्ट्रॉनिक क्रांति से एक तरफ जहां आम लोगों की उस पर निर्भरता बढ.ती जा रही है, वहीं दूसरी तरफ इलेक्ट्रॉनिक कचरे से होने वाले खतरे ने पूरे दक्षिण पूर्व एशिया खासकर भारतीय उपमहाद्वीप की चिंता बढ.ा दी है. पर्यावरण के खतरे और गंभीर बीमारियों का स्रोत बन रहे इस कचरे का भारत प्रमुख उपभोक्ता है. मोबाइल फोन, लैपटॉप, टेलीविजन और कबाड़ बन चुके कंप्यूटरों के कचरे भारी तबाही के तौर पर सामने आ रहे हैं. स्वास्थ्य और पर्यावरण को खतरा इलेक्ट्रॉनिक चीजों को बनाने में इस्तेमाल होने वाली सामग्रियों में ज्यादातर कैडमियम, निकेल, क्रोमियम, एंटीमोनी, आर्सेनिक, बेरिलियम और मरकरी का इस्तेमाल किया जाता है. ये सभी पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं. इनमें से काफी चीजें तो रिसाइकल करने वाली कंपनियां ले जाती हैं, लेकिन कुछ चीजें कबाड़ी के जरिये बाहर ही रहती हैं. वे हवा, मिट्टी और भूमिगत जल में मिलकर जहर का काम करती हैं. कैडमियम से फेफ.डे प्रभावित होते हैं, जबकि कैडमियम के धुएं और धूल के कारण फेफ.डे और किडनी दोनों को गंभीर नुकसान पहुंचता है. एक कंप्यूटर में आमतौर पर 3.8 पौंड शीशा, फास्फोरस, केडमियम और मरकरी जैसे हानिकारक तत्व होते हैं. इन्हें जलाने पर ये हानिकारक तत्व सीधे वातावरण में घुलते हैं. इनका अवशेष पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता है. अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण संगठन ग्रीनपीस के एक अध्ययन के मुताबिक, 49 देशों से इस तरह का कचरा भारत में आयात होता है. कितना कारगर हो पायेगा यह कानून! अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बेसल कंवेन्शन के अंतर्गत इलेक्ट्रॉनिक कचरे संबंधी नियमों का पालन होता है. चीन ने अपने यहां ई-कचरे आयात करने पर रोक कुछ समय पहले ही लगायी है. हांगकांग में बैटरियां और कैथोड-रे ट्यूब आयात नहीं किया जा सकता. इसके अलावा दक्षिण कोरिया, जापान और ताइवान ने यह नियम बनाया है कि जो कंपनियां इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद बनाती हैं वे अपने वार्षिक उत्पादन का 75 प्रतिशत रिसाइकल करें. वहीं, भारत में तो अभी ई-कचरे के निपटान और रिसाइकलिंग के लिए ठोस कोशिश प्रयास ही शुरू नहीं हुए. हालांकि, तामिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक, उसने सूचना प्रौद्योगिकी से जुड़ी कंपनियों को ई-कचरे के निस्तारण के लिए उचित तरीके अपनाने की हिदायत दी थी, लेकिन ज्यादातर कंपनियां इसका पालन नहीं करतीं. ऐसे में क.डे कानून की जरूरत है. अब जबकि नये कानून को लागू कर दिया गया है, तो उसका पालन किस तरीके से होता है यह भी एक चुनौती है, क्योंकि कई कंपनियां इसमें सुधार की मांग भी कर रही हैं. |
Electronic - Garbage new law will work! | ||
(More than 600 e - waste collection center in the country. These centers as e - disposal of garbage can. | ||
E 3,50,000 tonnes - 50,000 tonnes of waste every year in India and imports. | ||
05 percent of electronic waste, the world's waste.) | ||
Electronic waste in India, the e - waste disposal problem, the law has come into effect from May 1. Electronic Waste (Management and Handling) Rules -2011 in the country under the laws of any e - waste fly away somewhere or can not dump. Them under the Ministry of Environment authorized by the Central Pollution Board can be dumped in garbage collection center. E - waste management and related it to recycle much will change in the law, what is electronic - what kind of waste and its disposal are the challenges? Knowledge today is focused on these issues. | ||
▪ Chandan Mishra | ||
Ku often our homes. Day - throw out the trash. This is no question of us or is it some kind of punishment. It was a matter of general waste. But if you have TV, mobile or laptop or any kind of electronic waste to the dump, so it's fine with you - can also be adorned with. Indeed, the government said Tuesday the country from May to the electronic waste (Management and Handling) Rules have been applied to -2011. The e - waste dump, you can not fly anywhere. Under this law, e - waste must be authorized by the government agencies. Electronic Government Waste (Management and Handling) Rules under -2 011 73 Risaiklrs (reusable object was used to fit the agency) is authorized. According to Ministry of Environment, the law provides that any consumer of their old electronic goods sold or destroyed or can throw three ways - first, authorized collection center, the second - apparently Risaikls or any authorized third - submitted to producers. However, many provisions of the Act expressed opposition to the electronics companies. But the law will be the responsibility of companies producing electronics that the e - waste to collect. That's why producers have to improve this legislation. What was the rule Ministry of Environment and Forests, Central Pollution Control Board under the e - waste management and disposal of hazardous waste management, maintenance and Cross-Border Traffic Rules 2008 were made. Accordingly, e - waste disposal units must be registered in the Central Pollution Control Board. What is the current law provisions Ministry of Environment and Forests in May last year, E - Waste Management and Handling Rules were notified. J about it. Day traders and consumers were given a year to give information. The laws of all kinds of electronic product manufacturers, traders, and consumers will be applied to bulk consumers. Use of electronic and electric goods responsibly dispose of old institutions would be productive. For productive, but such a waste recycling (Recycling) responsible for and settlement institutions shall also apply this rule to dispose of correctly. Spoiled and unused equipment will be the responsibility of the user. What is e - waste E - out of the ruined West IT companies, which the changes in technique and style of the leaves. For example, the first large-size computer and monitor came in their place is now slim and flat screen monitors have been replaced with smaller ones. Mouse, the - board, or other mobile devices running out of bad Pujre, they e - come under the category of waste. Old-style computers, mobile phones, television and electronic toys and other equipment go to waste due to the electronic waste is generated every year in India. It is a serious threat to human health may Utptr. In the developed countries, the United States, in every house there as big as the whole year - roughly about 24 electronic devices are purchased. The old equipment is not used again. Also in America, so e - waste is created, the idea can be gauged from the fact that the 7 per cent a year old mobile cell change and put in the trash. The amount of e - waste India's public judging. Day, according to E in the country in 2004 - one million 46 thousand 800 tons of trash, which increased in 2012. Is estimated to be up to eight million tonnes. However, e - waste to produce 10 top cities Delhi, Mumbai, Bangalore, Kolkata, and Hyderabad are Chetri. What kind of challenge Developing countries in e - waste are sold to poor countries. That the poor in developing countries do not see that e - waste disposal rules - laws are made or not. Damage the waste can be realized from the fact that these are 38 different types of chemical elements.These losses can be considerable. Such as TV monitors and older engaged in Kanpuutr CRT (cathode ray tube) is difficult to recycle. Lead in the waste (glass), Mrkyuri (Hg) elements are just as deadly. The E - Disposal of waste is not easy, because the plastic and other materials are from a variety of metals. Essential metals, etc. The waste is removed from the fire burning. The toxic smoke from burning leaves is quite deadly. Immersed in acid or burning them in developing countries use of them gold - silver, platinum and other metals to remove. What is the situation in India Bangalore is India's information technology sector. The IT companies are doing about 1700. Every year from 8000 to 6000 thousand tons of electronic waste is coming out. The most worrying thing is to leave the country, thousands of tonnes of e - waste are only buying junk. Do not allow them to buy this kind of waste disposal system, nor scientific. However, Vibitr places E - The Network is designed to collect trash. The more than 600 e - waste collection center too. However, the proportion of waste is produced, it is wise at this number. Significantly, these organizations every year 3000 tons of 600 e - garbage is recycled. According to a report, in the next 10 years, India, China and other developing countries, sales of electronic devices by leaps Bdelgil They get this kind of e - waste a serious impact on the environment and people's health a. Dega. According to the report, this time to 100,000 tonnes every year in India, refrigerator, TV and 275,000 tons, 56.3 thousand tons of computers, printers and mobile phones from 4,700 tons to 1,700 tons of e - waste is coming out. E by 2020 because of old computers - waste figure of 500 per cent increase in India. Will. So if e - waste recycling laws were not strictly about the serious crisis facing is. And serious problem in developing countries E - waste problem not just in India, many countries are becoming serious situation. All the more acute problems of developing countries, which is considered the most safe dumping area. The developed countries India, China and Asian countries like Pakistan, the e - to export garbage. Development by setting aside their problems to import the garbage. In India, the condition that the import of such waste in India fourteen years ago to ban the dumping of industrial waste management and monitoring law -1 989 houses these imports has continued. America, Japan, China and Taiwan as the country with technical tools, mobile, Fotocopiyr, computers, laptops, TVs, microchips, CDs, etc. as soon as the junk they put bases in Southeast Asia where some countries. Among India'stops. It is said that the United States about 80 percent of its e - waste in China, Malaysia, India, Kenia and sends African countries. The fastest growing countries in the world. Three electronic revolution on one side by the increasing reliance on the public. Ti being, on the other hand the dangers of electronic waste in South East Asia, particularly the concern of the Indian subcontinent increase. has received. environmental threats and become a source of serious diseases are the major consumer of waste in India. Mobile phones, laptops, televisions and computers have become scrap as waste are exposed to massive destruction. Health and environmental hazards Most of the materials used in making electronic things cadmium, nickel, chromium, Antimoni, arsenic, beryllium and mercury are used. These are harmful to health and the environment. Companies that take a lot of these things are recycled, but some things remain the same through flea. The air, soil and groundwater along the poison work. Cadmium Fef. Day are affected, while cadmium fumes and dust caused by Fef. Day and reaches serious damage to both kidneys. A computer, usually 3.8-pound lead, phosphorus, cadmium and mercury are harmful ingredients like. These harmful substances are burned, they melt into the environment. The residual environmental damage. According to the international environmental organization Greenpeace study, 49 countries, this kind of waste is imported into India. How the law will be effective! Kanvenshn internationally under the Basel rules on electronic waste is. China in the e - waste import ban is applied some time ago. In Hong Kong, batteries and cathode - ray tube can not be imported. In addition, South Korea, Japan and Taiwan have made the rule that the companies that make electronic products to recycle 75 percent of their annual production. While in India, just e - Recycling for solid waste disposal and try to not start. However, the Tamil Nadu Pollution Control Board, according to IT-related companies he e - waste disposal was instructed to adopt the appropriate way, but most companies do not comply. A Day in the law is needed. Now that the new law has been applied, then it would follow the way is also a challenge, because many companies are also seeking to improve. | ||
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